सूरज की किरन का शोबदा है रंग-ए-रुख़-ए-ज़र्द उड़ गया है नक़्श-ए-कफ़-ए-पा ने गुल खिलाए वीराँ कहाँ अब ये रास्ता है जाग उट्ठी हैं ज़िंदगी की राहें शायद कोई चाँद को गया है शोलों से हुआ था बाग़ ख़ाली फिर सीना-ए-गुल भड़क उठा है पत्ते पत्ते का रंग बदला बदली बदली हुई फ़ज़ा है पहले तो न यूँ कभी हुआ था तू भी मुझे देख कर हँसा है बेगानगी ने ये राज़ खोला तू मेरा अज़ल से आश्ना है शबनम सर-ए-नोक-ए-ख़ार यानी लब पे मिरे हर्फ़-ए-मुद्दआ है हर दर्द नहीं दवा का मुहताज यूँ भी तो इलाज-ए-ग़म हुआ है तेरा ही रहेगा बोल-बाला दिल मेरा अबस धड़क रहा है