सूरज की तरह साया-ए-दीवार में आया वो शख़्स मिरे हल्क़ा-ए-मेआ'र में आया बे-साख़्ता खुलते गए पलकों पे सितारे वो मौसम-ए-ज़रख़ेज़ शब-ए-तार में आया कल रात भी गुल-रंग हुआ था कोई बिस्तर ये ज़िक्र नई तरह से अख़बार में आया इक याद से डूबी हुई हर नब्ज़ फिर उभरी ठहराव सा फिर साँस की रफ़्तार में आया कुछ देर झुकी पलकों के साए में रहा फिर वो रंग-ए-हया आरिज़-ओ-रुख़्सार में आया जब शहर-ए-तमन्ना का सुकूँ रास न आया घर लौट के मैं शिद्दत-ए-अफ़्कार में आया 'शहज़ाद' मैं हर मा'रका जब हार के बैठा तब जोश बला का दिल-ए-ख़ुद्दार में आया