सूरज तनाब-ए-शाम को थामे खड़ा रहे उस के पलट के आने का इम्कान सा रहे शब भर दर-ए-गुमाँ रहे दस्तक का मुंतज़िर गलियों में इक फ़रेब को आवाज़-ए-पा रहे अज़बर रहें किसी तरह पिछली रिफाक़तें सूखे हुए शजर पे भी इक घोंसला रहे मैं मिस्ल-ए-बू-ए-गुल हूँ हवाओं के साथ साथ महसूस कर सके वो मुझे ढूँढता रहे जाते हुए वो नाम मिरे दिल पे लिख गया छोड़े हुए मकाँ पे मकीं का पता रहे ऐसे गुज़र रही है हवादिस के दरमियाँ कश्ती सफ़र पसंद हो पानी रुका रहे बुझते हुए चराग़ की लौ पर है इंहिसार हो अश्क भी न आँख में बाक़ी तो क्या रहे यूँ भी न हों 'फ़रह' मिरे मसदूद रास्ते उस से कभी कभी तो कहीं सामना रहे