सुर्ख़ मिट्टी को हवाओं में उड़ाते हुए हम अपनी आमद के लिए दश्त सजाते हुए हम तुझ तबस्सुम की मोहब्बत में हुए हैं बरबाद मुस्कुराएँगे तिरा सोग मनाते हुए हम ला-मकानी में हमें छोड़ के जाता हुआ तू दश्त-ए-इम्काँ से तुझे ढूँड के लाते हुए हम ऐ ख़ुदा तू ही बता कैसे करेंगे इंकार आलम-ए-हू में तुझे हाथ लगाते हुए हम रक़्स करते हैं तो मिट्टी तो उड़ेगी प्यारे उन को लगते हैं करामात दिखाते हुए हम अपने होने से भी इंकार किए जाते हैं तेरे होने का यक़ीं ख़ुद को दिलाते हुए हम अब ऐ वहशत में गुँधी ख़ाक रखी चाक पे और अपने होने के लिए चाक घुमाते हुए हम हालत-ए-वज्द के हालात बता बात हो तो हालत-ए-हाल में तफ़रीह उठाते हुए हम ख़ामुशी शोर हैं और शोर बला का 'सरमद' तुम ने देखे हैं कहीं शोर मचाते हुए हम