सुरमई धूप में दिन सा नहीं होने पाता धुँद वो है कि उजाला नहीं होने पाता देने लगता है कोई ज़ेहन के दर पर दस्तक नींद में भी तो मैं तन्हा नहीं होने पाता घेर लेती हैं मुझे फिर से अँधेरी रातें मेरी दुनिया में सवेरा नहीं होने पाता छीन लेते हैं उसे भी तो अयादत वाले दुख का इक पल भी तो मेरा नहीं होने पाता सख़्त-जानी मिरी क्या चीज़ है हैरत हैरत चोट खाता हूँ शिकस्ता नहीं होने पाता लाख चाहा है मगर ये दिल-ए-वहशी दुनिया तेरे हाथों का खिलौना नहीं होने पाता