सुरूर दिल में न आँखों में ख़्वाब बाक़ी है शब-ए-फ़िराक़ फ़क़त इज़्तिराब बाक़ी है हज़ार रुख़ से वो पर्दा उठा चुके हैं मगर ज़िया-ए-हुस्न की अब भी नक़ाब बाक़ी है ख़ुदा के वास्ते ख़िस्सत से बाज़ आ साक़ी उंडेल दे वो जो ख़ुम में शराब बाक़ी है तुम्हारे आते ही अच्छा मैं हो गया साहब न अब अलम है न वो इज़्तिराब बाक़ी है शब-ए-फ़िराक़ गए मेरे दिल से सब्र-ओ-क़रार फ़क़त ग़म-ए-दिल-ए-ख़ाना-ख़राब बाक़ी है लहद में मुझ को जगाता है शोर-ए-महशर क्यों अभी तो दिल में तमन्ना-ए-ख़्वाब बाक़ी है हज़ारों हो गए पामाल आसमाँ लेकिन अभी ये 'साबिर'-ए-ख़ाना-ख़राब बाक़ी है