जिस तरफ़ देखो नज़र आते हैं ता'ने वाले हैं कहाँ नग़्मा-ए-दिल-गीर सुनाने वाले किस से रूठेंगे भला कौन मनाएगा हमें ज़ीनत-ए-शहर-ए-ख़मोशाँ हैं मनाने वाले अब तो ता'बीर भी बर-अक्स नज़र आती है गुम हुए जाने कहाँ ख़्वाब सुहाने वाले ये ज़माने का तक़ाज़ा है करूँ आह-ओ-बुका वर्ना ये लब थे हमेशा से तराने वाले कैसे इज़हार करूँ इश्क़-ए-ख़फ़ी का तुम से मुझ को मजनूँ का लक़ब देंगे ज़माने वाले ये करिश्मा भी तुम्हारी ही मोहब्बत से हुआ मिट गए हम को ज़माने से मिटाने वाले धड़कनें अपने अहाता से निकल आई हैं ऐसा लगता है कि नज़दीक हैं आने वाले ख़ंजर-ए-ज़ुल्म ने यूँ ही तो गला चूमा है हम हैं नेज़े पे भी क़ुरआन सुनाने वाले हम तो तलवार को ख़ुद अपनी ज़बाँ देते हैं हम हैं हर हाल में वा'दे को निभाने वाले इस से आगे तो फ़क़त साथ 'फ़लक' है मेरे क़ब्र तक जाएँगे काँधों पे उठाने वाले