बहुत अजीब है ता'मीर कोई घर करना रम-ए-ग़ज़ाल को महदूद-ए-बाम-ओ-दर करना नुमू का ज़ोर था ख़ुश्बू फ़ज़ा में लहराई यही तो है क़फ़स-ए-रंग में बसर करना क़रार मौत है मंज़िल-पज़ीर क़दमों की मुसाफ़िरों को फिर आमादा-ए-सफ़र करना ज़माना याद से तेरी लिपट के रोएगा मुशाहिदा तू ऐ उफ्तादा-ए-नज़र करना मैं जिस से कट के जुदा हो गया तनावर था है उस के नाम रक़म साया-ए-शजर करना बईद क्या है कि जुगनू से चाँद ढल जाए ज़रा सी आँच को इस तरह शो'ला-वर करना कभी लतीफ़ बदन पर शिकन भी फबती है कभी ये पैरहन आलूदा लम्स-भर करना