ताब खो बैठा हर इक जौहर-ए-ख़ाकी मेरा जाने किस रंग में होगा गुल-ए-ख़ूबी मेरा ज़ब्त-ए-गिर्या में है मश्शाक़ तमन्ना तू भी क़तरा क़तरा सही दामन तो भिगोती मेरा चाक-ए-वहशत से उतारा तो करम भी फ़रमा यूँही कब से है धरा कूज़ा-ए-हस्ती मेरा तेरी ख़ुशबू तिरा पैकर है मिरे शेरों में जान यूँही नहीं ये तर्ज़-ए-मिसाली मेरा मेरी दुनिया इसी दुनिया में कहीं रहती है वर्ना ये दुनिया कहाँ हुस्न-ए-तलब थी मेरा