तबाह हो के भी इक अपनी आन बाक़ी है बग़ावतों की तड़प ग़म की जान बाक़ी है ख़ला में डूब के हम को भी ये हुआ मालूम कि कुछ नहीं है मगर आसमान बाक़ी है ये मत कहो कि लुटी काएनात-ए-दर्द तमाम कि ज़ख़्म ज़ख़्म ये सारा जहान बाक़ी है मैं कैसे छोड़ दूँ टूटे हुए दर-ओ-दीवार शिकस्ता ख़्वाब का तन्हा मकान बाक़ी है न ख़त्म होंगे मसाइब के सिलसिले 'बाक़र' हज़ार ख़ार हुए इम्तिहान बाक़ी है