तबाही का बहाना ढूँडती है By Ghazal << अगर कुछ ए'तिबार-ए-जिस... अंधे अदम वजूद के गिर्दाब ... >> तबाही का बहाना ढूँडती है हवा एड़ी के बल फिर घूमती है अंधेरे सुरमई बादल हैं ऐसे ज़मीं अब आसमाँ को ढूँढती है ख़मोशी मुर्तइश होने लगी है कहीं बरबत की लय क्यूँ गूँजती है Share on: