ताबिंदा हुस्न-ए-राज़-ए-बहाराँ हमीं से है नज़्म-ए-ख़िज़ाँ जो है तो हिरासाँ हमीं से है अपने लहू का रंग मिला है बहार में लाला मिसाल-ए-शोला-ए-रक़्साँ हमीं से है जलता है अपना ख़ूँ ही सर-ए-बज़्म रात-भर ऐ हुस्न-ए-बे-ख़बर ये चराग़ाँ हमीं से है हम आज शहर-ए-यार के मा'तूब हैं तो क्या हर-दम वो अपने शहर में तरसाँ हमीं से है रक्खी है हम ने अपनी ज़बाँ पर वफ़ा की तेग़ नाम-ए-निको-ए-यार पुर-अफ़्शाँ हमीं से है हर-रंग में रहे हमीं सर-चश्मा-ए-हयात है काएनात हम से तो यज़्दाँ हमीं से है मरहून-ए-शौक़ बादा-गुसाराँ है दौर-ए-जाम मीना हुज़ूर-ए-यार ग़ज़ल-ख़्वाँ हमीं से है शोहरा तिरा गया मिरे नग़्मों के साथ साथ आलम को तेरी दीद का अरमाँ हमीं से है आँखों में 'अर्श' दर्द ने भड़काए हैं कँवल आब-ए-रवाँ में आतिश-ए-सोज़ाँ हमीं से है