ताबिश ये भला कौन सी रुत आई है जानी सहरा में कोई रेग न दरिया में है पानी ख़लवत-कदा-ए-दिल पे ज़बूँ-हाली-ए-बिसयार है सूरत गंजीना-ए-अलफ़ाज़-ओ-मआ'नी हर चंद हुई इस के एवज़ दिल की ख़राबी क्या कहिए कि बढ़ता रहा शौक़-ए-हमा-दानी मुझ से मिरी रोती हुई आँखें तो न छीनो रहने दो मिरे पास मिरी कोई निशानी दीवार-ओ-दर-ओ-बाम की वीरानी ने अक्सर रो रो के कही मौसम-ए-रफ़्ता की कहानी