तब्लीग़-ए-पयाम हो गई है हुज्जत भी तमाम हो गई है जब मौज-ए-सबा उधर से आई तफ़रीह-ए-मशाम हो गई है कितनी बोदी है तब-ए-इंसाँ आदत की ग़ुलाम हो गई है ख़्वाहिश कि थी आदमी को लाज़िम बढ़ कर इल्ज़ाम हो गई है तम्हीद-ए-पयाम ही में अपनी तक़रीर तमाम हो गई है बचना कि वबा-ए-सोहबत-ए-बद इस दौर में आम हो गई है हल्क़े में क़लंदरों के आ कर तहक़ीक़ तमाम हो गई है जर्गा में लोक़ंदरों के जा कर हिकमत बदनाम हो गई है शीरीं-दहनों की तर्ज़-ए-गुफ़्तार मक़्बूल-ए-अनाम हो गई है बेजा भी निकल गई है जो बात तहसीन-ए-कलाम हो गई है नामर्द के हाथ में पहुँच कर शमशीर नियाम हो गई है तकफ़ीर-ए-बिरादरान-ए-दीं भी शर्त-ए-इस्लाम हो गई है क्या शेर कहें कि शाएरी की तुर्की ही तमाम हो गई है