तड़प रहा है दिल-ए-बे-क़रार आ जाओ बस एक बार ऐ जान-ए-बहार आ जाओ तुम्हारे आने से लौट आएगी चमन में बहार ख़िज़ाँ उड़ाने लगी है ग़ुबार आ जाओ लगा दी आग गुलिस्ताँ में दुश्मनों ने मगर बुझाएँ आग जो हैं जाँ-निसार आ जाओ हैं घर के सारे दरीचे ही वा तुम्हारे लिए तसव्वुरात की दुनिया में यार आ जाओ न छूट जाए कहीं अब ये ज़ब्त का दामन न जाओ रूठ के जान-ए-बहार आ जाओ सहर का तारा भी 'शाहीन' कह रहा है यही गुज़र न जाए शब-ए-इंतिज़ार आ जाओ