तड़पता है तिरी फ़ुर्क़त में कोई नीम जाँ हो कर सितम है फेर लेना आँख तेरा मेहरबाँ हो कर ज़बाँ-गो सामने उन के न थी मुँह में मिरे गोया ख़मोशी कह रही थी हाल दिल मेरा ज़बाँ हो कर मैं बावर कर नहीं सकता बुत-ए-कमसिन के वा'दों को ये हैं बचपन की बातें भूल जाएगा जवाँ हो कर नहीं दो-चार तिनकों से फ़लक को दुश्मनी लेकिन उसे ज़िद है रहे क्यों ये हमारा आशियाँ हो कर मज़े से इश्क़ के ग़ाफ़िल रहे दोनों के दोनों ही वो मशग़ूल-ए-जफ़ा हो कर मैं मसरूफ़-ए-फ़ुग़ाँ हो कर अगर मश्क़-ए-सुख़न तेरी यूँही जारी रही 'बेख़ुद' तू रंग अफ़रोज़-ए-महफ़िल होगा तू रंगीं बयाँ होगा