तह-ए-अफ़्लाक ही सब कुछ नहीं है ज़मीं की ख़ाक ही सब कुछ नहीं है कई सच्चाइयाँ हैं मावरा भी हद-ए-इदराक ही सब कुछ नहीं है दिल-ओ-जाँ की भी निस्बत है जुनूँ से क़बा-ए-चाक ही सब कुछ नहीं है ये गुल बूटे बहुत दिलकश हैं लेकिन सर-ए-पोशाक ही सब कुछ नहीं है अभी है इब्तिदा मश्क़-ए-सितम की लब-ए-सफ़्फ़ाक ही सब कुछ नहीं है