तह-ए-दामाँ चराग़ रौशन है ज़ीस्त मेरी बक़ा का बचपन है शिकवा-ए-ज़ुल्म-ओ-जौर किस से करें आदमी आदमी का दुश्मन है एक अलाव है ये दहकता हुआ तुम्हें जिस पर गुमान-ए-गुलशन है फुंक रहा है चमन चमन लेकिन आप फ़रमा रहे हैं सावन है कौन हस्ती के सिलसिले को बुझाए एक से एक दीप रौशन है ज़िंदगी से कहाँ फ़रार 'सलाम' सीना-ए-मर्ग में भी धड़कन है