तहरीर बदलती है तक़दीर बदलती है माहौल बदलने से तदबीर बदलती है जब रंग बदलता है उस चश्म-ए-फ़ुसूँ-गर का हर जुरआ-ए-सहबा की तासीर बदलती है ये क्या तिरी निस्बत से हर शय में तलव्वुन है हर लम्हा तिरे ग़म की तस्वीर बदलती है होता है इक अर्सा तक जब ख़ून तमन्ना का तब ख़्वाब-ए-मोहब्बत की ता'बीर बदलती है वो कुछ भी कहें लेकिन मैं ख़ूब समझता हूँ इक जुम्बिश-ए-मिज़्गाँ से तक़दीर बदलती है आज़ादी के दीवाने क़ैदी को ख़बर दे दो होती है रिहाई कब ज़ंजीर बदलती है