ताइर-ए-शौक़ गिरफ़्तार नहीं रह सकता ये असीर-ए-दर-ओ-दीवार नहीं रह सकता जब्र हस्सास तबीअ'त पर अगर बोझ बने हब्स-आबाद में फ़नकार नहीं रह सकता हम अगर सच को ज़बानों पे सजा कर रक्खें फिर सफ़र ज़ीस्त का दुश्वार नहीं रह सकता तू भी मेरी ही तरह है मैं तुझे जानता हूँ देर तक तू भी वफ़ादार नहीं रह सकता रहनुमा बाँटते फिरते हों जहाँ ख़्वाब 'रज़ा' फिर वहाँ कोई भी बेदार नहीं रह सकता