तजल्लियों से अँधेरों की जंग जारी है उजाले सुर्ख़-रू हों ये दुआ हमारी है जहाँ पे कल था गुलिस्ताँ वो आज मक़्तल है फ़लक ख़मोश है फिर देखें किस की बारी है सर-ए-नियाज़ झुकाना मोहब्बतें देना ये बुज़-दिली नहीं दर-अस्ल ख़ाकसारी है रह-ए-जुमूद से नफ़रत उड़ान की ख़्वाहिश हक़ीक़तन ये ज़रूरत है जाँ-निसारी है ये गुलिस्ताँ है हमारी रियाज़तों का समर इसे सँवारने में सब की हिस्से-दारी है