तजरबे के दश्त से दिल को गुज़रने के लिए रोज़ इक सूरत नई है ग़ौर करने के लिए जब कोई बनता है लाखों हस्तियों को मेट कर सुब्ह तारों को दबाती है उभरने के लिए हामिल-ए-असरार-ए-फ़ितरत हूँ गदा भी हूँ तो क्या बात ये काफ़ी है मुझ को फ़ख़्र करने के लिए रूह को चमका ख़ुदी को तोड़ कर ज़ीने बना दो ये तदबीरें हैं दुनिया में उभरने के लिए ग़ौर से देखा निज़ाम-ए-दहर तो साबित हुआ आदमी पैदा हुआ है काम करने के लिए सुब्ह उठ कर आँसुओं से ख़ून के रोता हूँ मैं दिल के नक़्शे में वफ़ा का रंग भरने के लिए गौहर-ए-मक़्सूद ख़ुद मिलता है हिम्मत शर्त है मुज़्तरिब रहता है हर मोती उभरने के लिए आँख शरमाई हुई है बाल पेशानी पे हैं आईना-ख़ाने में जाते हैं सँवरने के लिए कह दो दुनिया के हवादिस से न छेड़ें इस तरह 'जोश' हम तय्यार ही बैठे हैं मरने के लिए