तज्दीद-ए-रस्म-ओ-राह-ए-मुलाक़ात कीजिए मुझ से नज़र मिला के ज़रा बात कीजिए दैर ओ हरम में रूह की तस्कीं न हो सकी अब एहतिराम-ए-पीर-ए-ख़राबात कीजिए आख़िर जनाब-ए-शैख़ हैं मेहमान-ए-मय-कदा दो-चार जाम दे के मुदारात कीजिए गुफ़्तार-ए-तल्ख़ शेवा-ए-वाइज़ है मय-कशो शीरीं दहन की आप से क्या बात कीजिए आया है कोई पुर्सिश-ए-अहवाल के लिए पेश आँसुओं की आप भी सौग़ात कीजिए 'अनवर' ख़याल-ए-दोस्त में लिख कर कोई ग़ज़ल तकमील-ए-तर्जुमानी-ए-जज़्बात कीजिए