तक़दीर में इज़ाफ़ा-ए-सोज़-ए-वफ़ा हुआ दिल में जो तुम ने आग लगा दी तो क्या हुआ कहते हैं जिस को मौत है इक बे-ख़ुदी की नींद उस को फ़ना कहाँ है जो तुझ पर फ़ना हुआ ऐ ख़ादिमान-ए-हुस्न ये क्या इंतिज़ाम है अब तक चराग़-ए-तूर पड़ा है बुझा हुआ हस्ती ओ नीस्ती की हदें दूर रह गईं ये आ गया कहाँ मैं तुझे ढूँढता हुआ मुँह से दुआ निकल ही गई वक़्त-ए-क़त्ल भी कहना ये था कि हक़्क़-ए-मोहब्बत अदा हुआ बहस-ए-नियाज़-ओ-नाज़ थी कल बज़्म-ए-हुस्न में 'सीमाब' कुछ ख़बर नहीं क्या फ़ैसला हुआ