तख़्लीक़ का अंदाज़ निकाल और तरह का पेङ़ा कोई अब चाक पे डाल और तरह का दिल होंगे दिलों में कोई धड़कन नहीं होगी इंसान पे आना है ज़वाल और तरह का अफ़्लाक की मशअ'ल से अंधेरे न मिटेंगे सूरज कोई धरती से उछाल और तरह का मुद्दत से मिरे नुत्क़-ओ-तख़य्युल में ठनी है लफ़्ज़ और तरह के हैं ख़याल और तरह का वो दूर से ईमेल पे कर लेते हैं बातें हिज्र और तरह का है विसाल और तरह का दुनिया की सभी आँखें हैं उस आँख पे हैराँ अब दश्त में आया है ग़ज़ाल और तरह का क़ीमत भी कोई पूछने आता नहीं 'साबिर' दूकान में डाला है जो माल और तरह का