तख़्त जिस बे-ख़ानमाँ का दस्त-ए-वीरानी हुआ सर उपर उस के बगूला ताज-ए-सुल्तानी हुआ क्यूँ न साफ़ी उस कूँ हासिल हो जो मिस्ल-ए-आरसी अपने जौहर की हया सूँ सर-ब-सर पानी हुआ ज़िंदगी है जिस कूँ दाइम आलम-ए-बाक़ी मुनीं जल्वा-गर कब उस अंगे यू आलम-ए-फ़ानी हुआ बेकसी के हाल में यक आन मैं तन्हा नहीं ग़म तिरा सीने में मेरे हमदम-ए-जानी हुआ ऐ 'वली' ग़ैरत सूँ सूरज क्यूँ जले नईं रात-दिन जग मुनीं वो माह रश्क-ए-माह-ए-कनआनी हुआ