ताकीद है कि दीदा-ए-दिल वा करे कोई मतलब ये है कि दूर से देखा करे कोई आते ही तेरे वादा-ए-फ़र्दा का ए'तिबार घबरा के मर न जाए तो फिर क्या करे कोई वो जल्वा बे-हिजाब सही ज़िद का क्या इलाज जब दिल में रह के आँख से पर्दा करे कोई कहते हैं हुस्न ही की अमानत है दर्द-ए-इश्क़ अब क्या किसी के इश्क़ का दावा करे कोई ख़ाली है बज़्म-ए-ज़ौक़-तलब अहल-ए-होश से इतना नहीं कि तेरी तमन्ना करे कोई वो दर्द दे कि मौत भी जिस की दवा न हो इस दिल को मौत दे जिसे अच्छा करे कोई 'फ़ानी' दुआ-ए-मर्ग की तकरार क्या ज़रूर ग़ाफ़िल नहीं कि उन से तक़ाज़ा करे कोई