तकमील-ए-शबाब चाहता हूँ हो जाऊँ ख़राब चाहता हूँ सर मा'रका-ए-अलम है करना थोड़ी सी शराब चाहता हूँ अपनी ही लताफ़त-ए-नज़र की उस रुख़ पे नक़ाब चाहता हूँ हो ख़ैर मोहब्बतों की यारब ज़ालिम से जवाब चाहता हूँ हाँ ऐ ग़म-ए-इशरत-ए-गुज़िश्ता इक फ़ुर्सत-ए-ख़्वाब चाहता हूँ इस छेड़ पे ज़िंदगी तसद्दुक़ बे-वज्ह इ'ताब चाहता हूँ वो मुझ से सवाल कर रहे हैं मैं उन से जवाब चाहता हूँ कुछ ऐसी हक़ीक़तें हैं जिन को पाबंद-ए-हिजाब चाहता हूँ