तलाश फिर कोई खोई सी रहगुज़ार में थी फिर आज इक शाम सुब्ह के इंतिज़ार में थी वजूद गरचे हवाओं की ज़द पे था हमारा चराग़ की लौ हथेलियों के हिसार में थी निगाह के सारे इख़्तियारात सल्ब से थे कशिश न जाने वो कौन सी ख़ारज़ार में थी उमीद से थीं यहाँ वहाँ तक तमाम आँखें तलब बरहना विसाल के कार-ज़ार में थी उसे मुसव्विर ने रौशनी से बदन किया है अँधेरी ख़ुशबू जो दीडा-ए-ख़्वाब-कार में थी वक़ार क़ाएम न रख सकी दूसरे बदन पर अना बहुत मो'तबर थी जब ख़ाकसार में थी ख़याल 'परवेज़' दायरा बंद हो गया था यक़ीन सी कोई चीज़ क़ुर्ब-ओ-जवार में थी