तल्ख़ी-ए-मय तल्ख़ी-ए-हालात की तौहीन है नश्शे में सच बोलना सच बात की तौहीन है गर नहीं है आइना पत्थर उठा लो दोस्तो यूँही ख़ाली हाथ फिरना हाथ की तौहीन है आदमी ही आदमी से बात करता है जनाब बात करने में भला किस बात की तौहीन है आप ने तस्वीर खिंचवाई मदद करते हुए ये तो कार-ए-ख़ैर की ख़ैरात की तौहीन है पास बैठे दूर तकना वो भी ख़ामोशी के साथ ये तो हँसते बोलते लम्हात की तौहीन है दिल पे छाना और आँखों में न आना बादलो ये तो सावन की हतक बरसात की तौहीन है बाइ'स-ए'ज़ाज़ है दरिया में मिलना क़तरे का कौन कहता है मोहब्बत ज़ात की तौहीन है