तल्ख़ियाँ इस में बहुत कुछ हैं मज़ा कुछ भी नहीं ज़िंदगी दर्द-ए-मोहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं शम्अ' ख़ामोश भी रहते हुए ख़ामोश कहाँ इस तरह कह दिया सब कुछ कि कहा कुछ भी नहीं हम गदायान-ए-मोहब्बत का यही सब कुछ है गरचे दुनिया यही कहती है वफ़ा कुछ भी नहीं ये नया तर्ज़-ए-करम है तिरा ऐ फ़स्ल-ए-बहार ले लिया पास में जो कुछ था दिया कुछ भी नहीं हम को मा'लूम न था पहले ये आईन-ए-जहाँ उस को देते हैं सज़ा जिस की ख़ता कुछ भी नहीं वही आहें वही आँसू के दो क़तरे 'आजिज़' क्या तिरी शाइ'री में इन के सिवा कुछ भी नहीं