तअल्लुक़ टूटने का ग़म उठाना भी ज़रूरी था ज़रूरी तुम भी थे लेकिन ज़माना भी ज़रूरी था तेरी आँखों की बेचैनी मिरी ज़ंजीर थी लेकिन खड़ी थी रेल-गाड़ी और जाना भी ज़रूरी था मोहब्बत का बदल कुछ भी अगर है तो मोहब्बत है गए थे जिस तरह वैसे ही आना भी ज़रूरी था अगर मैं फ़र्ज़ था तो फिर निभाया क्यों नहीं तुम ने अगर मैं क़र्ज़ था तो फिर चुकाना भी ज़रूरी था मैं कब तक राज़ रखता दिल में अपनी बेवफ़ाई का ये बात आ कर तुम्हें इक दिन बताना भी ज़रूरी था फ़ज़ा में इस तरह उड़ता रहेगा मुस्तक़िल कब तक परिंदे के लिए इक आशियाना भी ज़रूरी था