तमाम दर्द किसी लय में गुनगुनाते हुए वो खो गया कहीं शिवरंजनी सुनाते हुए क़ुसूर वक़्त का लैला का था न दुनिया का वो क़ैस था जो रहा बार-ए-जाँ उठाते हुए हमीं ने चार गिरह रंग रख दिया दर पर हमीं ने याद किया ख़ुशबुओं को जाते हुए धुएँ में हो गई तब्दील रंग-ओ-बू खो कर बयार सब्ज़ बनों से नगर को आते हुए ऐ ज़िंदगी कभी इंकार का सबब भी सुन मैं थक गया हूँ तेरी हाँ में हाँ मिलाते हुए