तमाम दुनिया में ढूँड आया मैं गुम-शुदा ज़िंदगी की सूरत मिली तो मुझ को हयात-ए-मुज़्तर मगर मिली अजनबी की सूरत सबक़ है सीखा हम अहल-ए-दिल ने ये इज्ज़ की सर-बुलंदियों से कि एक सज्दा है काफ़ी लेकिन हो बंदगी बंदगी की सूरत अजीब दस्तूर-ए-आशिक़ी है न मैं ही मैं हूँ न तुम ही तुम हो न दोस्ती दोस्ती की सूरत न दुश्मनी दुश्मनी की सूरत ख़बर तसव्वुर ख़याल ईमाँ गुमाँ यक़ीं फ़िक्र इल्म हिकमत मक़ाम-ए-ख़ुद-आगही के आगे सवाद-ए-कम-आगही की सूरत बरहना-सर आबला-गज़ीदा शिकस्ता-दिल पैरहन-दरीदा मक़ाम-ए-सिदरा पे सोच में हूँ कोई है पर्दा-दरी की सूरत मिला सर-ए-राह ख़ुद से जब मैं अजीब ही अपना हाल देखा किसी की आँखें किसी का चेहरा नज़र किसी की किसी की सूरत न पूछ मुझ से कि मैं कहाँ हूँ मुझे तो कुछ भी पता नहीं है कि अपनी सूरत में आ रही है नज़र मुझे हर किसी की सूरत ये सच है दुनिया में और होंगे जमील-ओ-ख़ुश-रू हसीन-ओ-दिलबर पसंद आई मगर हमें तो जनाब-ए-मन आप की ही सूरत न जाने कब से खड़ा था 'सरवर' इक आस्तीन-ए-उमीद थामे वो निकला ख़ुद से ही ग़ैर-हाज़िर हुई अजब हाज़िरी की सूरत