तमाम फेंके गए पत्थरों पे भारी था वो एक फूल अकेला सभों पे भारी था न मुझ से दिल ने बताया न मैं ने ही जाना वो कैसा ग़म था जो सारे ग़मों पे भारी था मैं उन की रह से गुज़रता न था मगर फिर भी मिरा वजूद मिरे दुश्मनों पे भारी था अगरचे बैठा था मैं उन के दरमियाँ ख़ामोश मिरा सुकूत मगर शाइरों पे भारी था वो जिस का कोई न था दूर इक ख़ुदा के सिवा ज़मीं का बोझ न 'फ़र्रुख़' दिलों पे भारी था