तमाम ख़ुश्क दयारों को आब देता था हमारा दिल भी कभी आसमान जैसा था अजीब लगती है मेहनत-कशों की बद-हाली यहाँ तलक तो मुक़द्दर को हार जाना था नए सफ़र का हर इक मोड़ भी नया था मगर हर एक मोड़ पे कोई सदाएँ देता था बग़ैर पूछे मिरे सर में भर दिया मज़हब मैं रोकता भी तो कैसे कि मैं तो बच्चा था कोई भी शक्ल उभरना मुहाल था यारो हमारे साये के ऊपर शजर का साया था तमाम उम्र ख़ुद अपने पे ज़ुल्म ढाते रहे मोहब्बतों का असर था कि कोई नश्शा था बड़ा सुकून मिला उस से बात कर के हमें वो शख़्स जैसे किसी झील का किनारा था बस एक वार में दुनिया ने कर दिए टुकड़े मिरी तरह से मिरा इश्क़ भी निहत्ता था अलावा इस के मुझे और कुछ मलाल नहीं वो मान जाएगा इस बात का भरोसा था