तमाम लफ़्ज़ मुझे दस्तियाब थे लेकिन सवाल वो थे कि जिन के जवाब थे लेकिन ज़मीन-ए-दिल पे लिखा हर्फ़ सच रहा होगा नुक़ूश-ए-इश्क़ नज़र के सराब थे लेकिन वो शहर जिस के सभी रावियों ने चैन लिखा पले उसी में कई इंक़लाब थे लेकिन निकल रहे हैं अबु-जेहल ही के रिश्ते-दार किसी ज़माने में अहल-ए-किताब थे लेकिन तो क्या कि इश्क़ की क़ीमत पे चढ़ गए सूली मिरी नज़र में वही कामयाब थे लेकिन जो सींचते रहे रिश्ते सवाब की ख़ातिर उन्ही के हिस्से में कितने अज़ाब थे लेकिन ठहर तो जाते किसी मंज़िल-ए-हयात पे हम सफ़र पे मौत के पा-ब-रिकाब थे लेकिन हर एक शख़्स था ख़ारों के हार पहने हुए 'हिना' क़दम में सभों के गुलाब थे लेकिन