तमाम उम्र गुज़ारी जिसे बचाते हुए वो दिल दिया उसे लम्हों में मुस्कुराते हुए किसी का सारा सफ़र उजलतों की नज़्र हुआ किसी ने सोचा नहीं था क़दम उठाते हुए हर एक साँस ने रक्खा मुग़ालते में मुझे मैं ख़र्च होता गया ज़िंदगी कमाते हुए कशीद रौशनी कुछ लोग इस से कर लेंगे किसी ने सोचा था कब तीरगी बनाते हुए नज़र में रखना मिरे ख़ाल-ओ-ख़द तसल्ली से ऐ कूज़ा-गर तू मुझे चाक पर घुमाते हुए