तमन्नाएँ अज़िय्यत का नज़ारा हम न कहते थे ख़सारा है ख़सारा ही ख़सारा हम न कहते थे तुम्हारी इंतिहाएँ अंत पर बे-सूद निकली हैं समुंदर जितना गहरा उतना खारा हम न कहते थे न तू बंदों से है राज़ी न बंदे तुझ से राज़ी हैं ख़ुदाई रोग है परवरदिगारा हम न कहते थे ये मैदान-ए-तग-ओ-दौ है मशक़्क़त ही मशक़्क़त है वही जीतेगा जो सौ बार हारा हम न कहते थे ग़ुलामी को तो आज़ादी समझते हैं यहाँ इंसाँ ये हथकड़ियों में कर लेंगे गुज़ारा हम न कहते थे चुना था तू ने जो रस्ता उसे हम तर्क कर आए सियानों को है काफ़ी इक इशारा हम न कहते थे सभी ने अपने तिनके भी बिल-आख़िर ख़ुद उठाए हैं नहीं होगा यहाँ कोई सहारा हम न कहते थे न 'ज़ीशान' आगही पूरी हुई उम्रें हुईं पूरी न होगा इल्म का कोई किनारा हम न कहते थे