तमाशा इस बरस ऐसा हुआ है समुंदर सूख कर सहरा हुआ है हमें भेजा तो है दुनिया में लेकिन हमारे साथ कुछ धोका हुआ है मुझे लगता है जादूगर ने मुझ को किसी ज़ंजीर से बाँधा हुआ है जहाँ पर शादयाने बज रहे हैं मिरा लश्कर वहीं पसपा हुआ है जो मेरे और उस के दरमियाँ थी उसी दीवार पर झगड़ा हुआ है असीरान-ए-क़फ़स ये पूछते हैं मुक़ीमान-ए-चमन को क्या हुआ है कई दिन से बस इक हर्फ़-ए-मोहब्बत सर-ए-नोक-ए-ज़बाँ अटका हुआ है गुज़रगाहों में सन्नाटा है 'मोहसिन' ग़ुबार-ए-हमरहाँ बैठा हुआ है