तामीर-ए-ज़िंदगी को नुमायाँ किया गया तख़रीब-ए-काएनात का सामाँ किया गया गुलशन की शाख़ शाख़ को वीराँ किया गया यूँ भी इलाज-ए-तंगी-ए-दामाँ किया गया खोए होऊँ पे तेरी नज़र की नवाज़िशें आईना दे के और भी हैराँ किया गया आवारगी-ए-ज़ुल्फ़ से आसूदगी मिली आसूदगी मिली कि परेशाँ किया गया वो ख़ुश-नसीब हूँ कि ग़म-ए-इल्तिफ़ात से मेरे ग़म-ए-हयात का दरमाँ किया गया तन्हाइयाँ बिछा के जहान-ए-ख़राब में मेरे लिए निगाह का सामाँ किया गया फैला के बे-सबाती-ए-आलम की दास्ताँ मुझ पर हराम कैफ़-ए-बहाराँ किया गया भड़का के आतिश-ए-रुख़-ए-जानाँ की आरज़ू मुझ को रहीन-ए-आतिश-ए-दौराँ किया गया नौमीदी-ए-तलब पे चढ़ा के तलब का रंग उम्मीद-ए-दीद-ए-दोस्त को अर्ज़ां किया गया ये भी करम कि मुझ को शबान-ए-सियाह में मामूर-ए-दिलनवाज़ी-ए-हिज्राँ किया गया जमइय्यत-ए-जमाल का हुस्न-ए-कमाल देख आख़िर यही हुआ कि परेशाँ किया गया दे कर चमन को बहार-ओ-ख़िज़ाँ का रंग मेरे ख़याल-ओ-ख़्वाब पे एहसाँ किया गया आ और काएनात के फूलों की दाद दे जिन से तिरा जमाल नुमायाँ किया गया