तन में दम रोक मैं ब देर रखा आओ जी किस ने तुम को घेर रखा हम गए वाँ तो याँ वो आया वाह ख़ूब क़िस्मत ने हेर-फेर रखा कर गया वो ही राह-ए-इश्क़ को तय याँ क़दम जिस ने हो दिलेर रखा सब को आजिज़ किया फ़लक ने पर एक आहू-ए-दिल पे ग़म को शेर रखा जा के बैठे जो कू-ए-यार में हम वाँ से बाहर क़दम न फेर रखा ब'अद मुद्दत वो देख कर बोला किस ने याँ ख़ाक का ये ढेर रखा शुक्र ऐ दर्द-ए-इश्क़ तू ने सदा ज़िंदगानी से हम को सेर रखा कैसा घबरा गया वो कल हम ने टुक जो रस्ते में उस को घेर रखा ख़ैर हो या इलाही 'जुरअत' ने आशिक़ी में क़दम को फेर रखा