तनाबें कटने लगीं मेरी ख़ुश-बयानी की कि अब वो रुत ही नहीं तेरी मेहरबानी की डुबो दिया है मुझे मेरी ख़ुश-यक़ीनी ने ये बात ग़ौर-तलब है मिरी कहानी की ख़िज़ाँ में हिज्र की डूबा विसाल का मौसम मगर है ज़ेहन में ख़ुशबू सी रात रानी की कभी तो आएगा साहिल तिरी रिफ़ाक़त का अभी मैं बैठा हूँ कश्ती में बद-गुमानी की शगुफ़्ता लहजे में वो मुझ से बोलता ही नहीं जहाँ में धूम सी है जिस की ख़ुश-बयानी की कली चटक उठी माहौल हो गया गुल-बेज़ जो बात आई कभी उस की ख़ुश-बयानी की गुलाब चेहरे उमीदों के बुझ गए 'मेहदी' न बात कीजिए मौसम की मेहरबानी की