तंग आ गए हैं कश्मकश-ए-आशियाँ से हम अब जा रहे हैं आप के इस गुलिस्ताँ से हम सय्याद ने जो काट दिए बाल-ओ-पर तमाम फ़रियाद आज करते हैं उस बाग़बाँ से हम बिजली चमक रही है नशेमन की ख़ैर हो मायूस हो गए हैं कुछ अब आशियाँ से हम फ़स्ल-ए-बहार है अजी गाने के रोज़ हैं कुंज-ए-क़फ़स में बैठे हैं इक बे-ज़बाँ से हम हर शख़्स है हमारी मोहब्बत पे ता'ना-ज़न तंग आ गए हैं अपनी ही इस दास्ताँ से हम उन की नवाज़िशात भी सब राएगाँ गईं नादिम से हो रहे हैं अब इक मेहरबाँ से हम ये शुक्र है कि दूर नहीं मंज़िल-ए-मुराद छुप-छुप के जा पहुँचते हैं हर पासबाँ से हम ऐ दिल मुआ'फ़ कर दे 'निज़ामी' की बे-रुख़ी डरते हैं इस ज़माने में हर बद-गुमाँ से हम