तन्हाई की आग़ोश में था सुब्ह से पहले मिलती रही उल्फ़त की सज़ा सुब्ह से पहले शायद मिरे लफ़्ज़ों पे तरस आए उसे अब रोते हुए माँगी है दुआ सुब्ह से पहले साया भी मिरा खो गया तारीकी-ए-शब में ज़ुल्मत का असर ऐसा रहा सुब्ह से पहले जब रात में सो जाती है ये सारी ख़ुदाई देता है मुझे कौन सदा सुब्ह से पहले शायद कि मुक़द्दर में न हो कल का ये सूरज हो जाए हर इक क़र्ज़ अदा सुब्ह से पहले 'शौकी' तुझे मिल जाएँगे शैख़ और बरहमन इस शहर के मयख़ाने में आ सुब्ह से पहले