तन्हाई के सब दिन हैं तन्हाई की सब रातें अब होने लगीं उन से ख़ल्वत में मुलाक़ातें हर आन तसल्ली है हर लहज़ा तशफ़्फ़ी है हर वक़्त है दिल-जूई हर दम हैं मुदारातें मेराज की सी हासिल सज्दों में है कैफ़िय्यत इक फ़ासिक़-ओ-फ़ाजिर में और ऐसी करामातें बैठा हुआ तौबा की तू ख़ैर मनाया कर टलती नहीं यूँ 'जौहर' इस देस की बरसातें