तन्हाइयों की रात बड़ी दूर तक गई छोटी सी एक बात बड़ी दूर तक गई हम तो हर इम्तिहाँ में हुए सुरख़-रू मगर मजबूरी-ए-हयात बड़ी दूर तक गई तिश्ना-लबी तो ज़ीस्त का औज-ए-कमाल थी गो कि लब-ए-फ़ुरात बड़ी दूर तक गई वाइ'ज़ तुम्हारी जन्नत-ओ-दोज़ख़ की ख़ैर हो रिंदों की काएनात बड़ी दूर तक गई बिछड़े हर एक मोड़ पे साथी बहुत मगर इक याद मेरे सात बड़ी दूर तक गई हम ने सभी को चाहा मुक़र्रर हुदूद में लेकिन तुम्हारी ज़ात बड़ी दूर तक गई