तनवीर-ए-हुस्न दिल में समाती चली गई ज़र्रे को काएनात बनाती चली गई फ़ितरत ये खेल रोज़ दिखाती चली गई शक्लें बना बना के मिटाती चली गई क़ाइल हूँ मैं कशिश का तिरी ऐ उरूस-ए-दहर दाम-ए-फ़रेब शौक़ में लाती चली गई अल्लाह रे शबाब की मस्ती भरी नज़र फ़ित्ने क़दम क़दम पे उठाती चली गई हंगाम-ए-नज़्अ' ख़्वाहिश-ए-तकमील-ए-आरज़ू दस्त-ए-तलब कुछ और बढ़ाती चली गई कोई जला रहा था चराग़-ए-मज़ार को लेकिन सबा को ज़िद थी बुझाती चली गई क़ुदरत के शाहकार पपीहे तिरी सदा इक हूक सी जिगर में उठाती चली गई हर हाल में थी उन की नज़र जाज़िब-ए-नज़र 'रौशन' दिलों पे नक़्श बिठाती चली गई