तपते सहरा में कहीं कोई शजर आता है दर्द पर तर्क-ए-सुकूनत का असर आता है सदमा-ए-हिज्र से महफ़ूज़ रखूँगा तुझ को मुझ को क़िस्तों में बिछड़ने का हुनर आता है दिन गुज़र जाता है ता'बीर की हसरत ले कर रात होती है तो फिर ख़्वाब उतर आता है जब से जाने हैं मोहब्बत के फ़वाएद हम ने एक ही शख़्स कई बार नज़र आता है दर्द-ए-फ़ुर्क़त में तिरी आँखें फ़क़त गीली हुईं मेरी आँखों में मियाँ लाल कलर आता है हिज्र की शब मिरे पहलू में रहा तेरी तरह वो सितारा जो बहुत दूर नज़र आता है कोई आवारगी-ए-शहर से बच ही न सका अब परिंदा भी कहाँ शाम को घर आता है मुझ को चमका गई 'आफ़ाक़' बड़ों की सोहबत जैसे क़तरे पे समुंदर का असर आता है