ताराज ख़्वाहिशों का मुदावा न हो सका कोई हमारे वास्ते ईसा न हो सका इतनी शदीद धूप थी मुझ पे कि उम्र-भर अब्र-ओ-दरख़्त से कभी साया न हो सका नींदों में छोड़ कर हमें आगे निकल गया हम से उस एक ख़्वाब का पीछा न हो सका गुज़रे फिर एक बार तो दोनों के दरमियाँ वो वाक़िआ' जो तूर पे पूरा न हो सका दहक़ान-ए-ग़म ने ख़ून से सींची ज़मीन-ए-दिल लेकिन ये दश्त दश्त था सब्ज़ा न हो सका